भाग 3_ मूल्य-अमूल्यसुबह की हल्की धूप फैल रही थी।रिया, अपनी मां और छोटे भाई आयुष के साथ, राहुल को बाय कहकर घर की ओर बढ़ रही थी।उनके कदम थक चुके थे लेकिन मन थोड़ा हल्का लग रहा था – जैसे किसी बोझ से छुटकारा मिला हो।घर अब कुछ ही दूरी पर था।रिया की मां, सुनीता, चलते-चलते अचानक ठिठक गईं।उनकी नज़र अपने घर पर पड़ी —मुख्य दरवाज़ा... पूरी तरह खुला हुआ था।"रिया," सुनीता की आवाज़ में घबराहट थी,"तूने घर लॉक तो किया था न?"रिया थोड़ी सकपका गई, उसकी आंखें दरवाज़े की ओर टिक गईं।"हां मॉम, मैंने ठीक से लॉक किया था,"