भाग 3: "जब वो दोबारा पास आया..." "कभी-कभी रास्ते वही रहते हैं, पर नज़रे तलाशती हैं वो जो अब वहाँ नहीं होते।" कुछ मुलाक़ातें वक़्त तय नहीं करता, बस दिल की किसी पुरानी खिड़की से दाखिल हो जाती हैं। आर्ट एग्ज़िबिशन के बाद ज़िंदगी फिर अपनी रफ्तार में लौट गई। कॉलेज, असाइनमेंट्स, दोस्त, ज़िम्मेदारियाँ… सब कुछ पहले जैसा ही था, बस अब एक नाम बार-बार ख्यालों में गूंजता था — पेमा तेन्ज़िन। वो लड़का जो कभी बोल नहीं पाया, अब अपनी कला से कह रहा था सब कुछ—बिना रुके। कई हफ्ते बीत गए।