जीवन की गति केवल बनना नहीं है — बनना और मिटना, दोनों साथ-साथ प्रकृति का शाश्वत संचार है। जो जन्म लेता है, वह निश्चय ही एक दिन लय होता है। परंतु मिटना केवल समाप्ति नहीं, भीतर उठती हुई नवचेतना का जन्म है। यही बोध आत्मा के विकास की पहली सीढ़ी है। यह लेख उसी “मिटने” की प्रक्रिया को समझने, स्वीकारने और साधक के रूप में जीने का आह्वान है — जहाँ 'मैंपन' का विसर्जन ही परम आनंद का जनक बन जाता है। अध्याय १: मिटना — चेतना का प्रथम आलोक "जो बना है, वह मिटेगा;