धूमकेतू - 3

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धूमकेतु – भाग 3: सच्चाईचारों ओर सन्नाटा।पुलिस की गाड़ियों की लाइटें अब भी टिमटिमा रही थीं। लोग अभी भी सदमे में थे।अजय की मां चीख रही थीं—“अजय! अजय कहाँ गया?”लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।आकाश में काले बादलों के बीच से एक परछाई छलांगें लगाते हुए शहर से दूर निकल चुकी थी — अजय को लेकर।---धीरे-धीरे अजय को होश आता है।उसकी पलकें भारी थीं, सिर में दर्द और शरीर थक चुका था।आंखें खुली तो खुद को एक अजीब से बंद कमरे में पाया — चारों ओर धातु की दीवारें, बिना किसी खिड़की के।अजय डर गया।तभी एक गूंजती