खामोश ज़िंदगी के बोलते जज़्बात - 3

             भाग- 3              "धड़कनों की दस्तक..."             रचना:  बाबुल हक़ अंसारी(पिछले भाग से...)और जब नीरव ने पूछा — "क्या आर्या ज़िंदा है?"आयशा ने सिर्फ़ इतना कहा —"शायद... लेकिन कभी-कभी कुछ लोग सिर्फ याद बनकर जीते हैं।"******************************************उस रात नीरव की सांसें भारी थीं।दीवार पर टंगी आर्या की वही पुरानी तस्वीर उसे टकटकी लगाए देख रही थी —सहलाते हुए, पूछते हुए... "क्या अब भी तुम मुझे उसी शिद्दत से महसूस करते हो?"उसने धीरे से अलमारी में छिपी उस डायरी को निकाला, जो उसने कभी आर्या की मुस्कान