ताज़ा व्यंग्य घरैतिन की नज़रों में मैं . यशवंत कोठारी प्रोढ़ा पत्नियाँ कांच का सामान होती हैं जरा सी ठपक लगते ही बिखर जाती है हैंडल विथ केयर वाला मामला है . जो आदमी अच्छी सब्जी सस्ते में नहीं खरीद सकता ,वो जीवन में कुछ नहीं कर सकता ,जिन्दगी में सौ का नोट भुनाना सीख लो ,ये ब्रह्म वाक्य आज सुबह सुबह चाय के साथ श्रवण करने पर मेरा दिमाग इस पुराने विषय की और चल पड़ा .मोज़े कहाँ है ये पूछने पर कई पेराग्राफ का एक व्याख्यान सुनना पड़ता है ,और कभी कभी तो उपन्यास या एक