रात की स्याही जैसे-जैसे गहराती जा रही थी, हवाओं की सरसराहट में कुछ अजीब-सा गूंजने लगा था। गाँव के आखिरी सिरे पर बनी वो पुरानी हवेली, जिसे सालों से किसी ने नहीं छुआ था, आज फिर से ज़िंदा हो उठी थी। एक बूढ़ा दरवाज़ा अपनी जगह से हिला, जैसे किसी ने उसे भीतर से धक्का दिया हो। रात के उस सन्नाटे में हवेली के खंडहरों से आती धीमी-धीमी हँसी ने जैसे हवा को ही जकड़ लिया। लोग कहते थे, उस हवेली में कोई है… पर कोई ज़िंदा नहीं।बहुत साल पहले, उस हवेली में ठाकुर पृथ्वी सिंह का परिवार रहता था।