रात की नीरवता में सिर्फ़ जुगनुओं की हल्की रौशनी और दूर कहीं उल्लू की टूक-टूक आवाज़ सुनाई दे रही थी। पेड़ों की टहनियाँ आपस में टकराकर अजीब-सी सरसराहट कर रही थीं। हवा में अजीब सी नमी और ठंडक थी, जैसे कुछ छुपा हो उस अंधेरे के पर्दे में… कुछ ऐसा जो दिखता नहीं, पर मौजूद ज़रूर है।दुर्गापतिया गांव पहाड़ों के बीच बसा एक वीरान गांव था। वहां के लोग बहुत सीधे-सादे थे, लेकिन एक चीज़ थी जिससे वे कांपते थे। गांव के बाहर बने एक खंडहर की हवेली से आने वाली हँसी। एक ऐसी हँसी जो दिल के आर-पार उतर