धर्म, प्रवचन, ज्ञान नहीं - प्यास चाहिए

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"धर्म का द्वार वहां नहीं खुलता जहां ज्ञान होता है,बल्कि वहां खुलता है जहां 'भीतर की प्यास' जागी होती है।" — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓷𝓲 और जब कोई भीतर से फूटता है —तब वह संसार के नहीं,परमात्मा के योग्य हो जाता है। मनुष्य क्या सच में सोचता है? या वह केवल देखता है — दूसरे क्या कर रहे हैं, और वही करने लगता है? भीड़ चलती है, और मनुष्य उसी में शामिल हो जाता है। जैसे एक अंधा, दूसरे अंधों के पीछे। धर्म कहता है — "ऐसे खाओ, ऐसे चलो, ऐसे बोलो, ऐसे बनो जैसे हमने बताया है।" और मनुष्य सोचता