रवि मुस्कराया,“ठीक है, जैसा तुम चाहो… मैं तुम्हारे साथ चलूंगा।”रवि और तृषा दोनों दादी से मिलने गांव की ओर निकल पड़े।घंटों की यात्र के बाद तृषा अपने गांव पहुंचती है। तृषा ने घर पहुंचने पर जब दरवाजे को खटखटाया,जैसे ही दादी ने दरवाज़ा खोला, तृषा को सामने देखकर उनकी आंखें खुशी से भर आईं।“अरे मेरी बच्ची!” दादी ने उसे गले लगा लिया।वे दोनों गले लग कर बहुत खुश हुई।बहुत दिनों बाद दादी से मिलने की खुशी में तृषा रवि का परिचय दादी से करना भूल ही गई थी।फिर दादी तृषा से पूछती है... ये कौन है, बेटा,तृषा 'ओहो' माफ करना रवि