त्रिलोक सिंक्रोनाइज़र के सक्रिय होते ही धरती पर समय के बहाव में एक हल्का कंपन हुआ। जैसे ही तीनों रत्न अपने-अपने वृत्तों में पूर्ण गति से घूमे, उस अर्धवृत्ताकार चैंबर की दीवारें प्राचीन ऋचाओं से गूंज उठीं — लेकिन ये ध्वनियाँ किसी मुँह से नहीं, बल्कि ऊर्जा से निकल रही थीं।आर्यन, अब उस यंत्र के सम्मुख खड़ा, कांपती साँसों के साथ उसे देख रहा था।वेदिका की आँखें बंद थीं, उसके होठ कुछ मंत्र बुदबुदा रहे थे।और प्रोफेसर ईशान वर्मा, जिनके चेहरे पर अब तक वैज्ञानिक तर्क की दृढ़ता थी, एक अबूझ श्रद्धा में डूबे लग रहे थे। "ऋग्वेद कभी मरा