अनचाही मोहब्बत - 2

  • 195
  • 87

अनचाही मोहब्बतभाग 2 — मोहब्बत जो जन्मी खामोशी सेशहनाज़ को याद था, वो रात जब हसन पहली बार खुलकर बोला था। उसने कहा था — "मैं कोशिश करना चाहता हूँ।" और किसी जले हुए रिश्ते के लिए, यह शब्द किसी बारिश की बूँद की तरह होते हैं — छोटी सी, मगर राहत देने वाली।उसके बाद सबकुछ एकदम नहीं बदला। पर कुछ-कुछ बदलने लगा था।अब हसन उसे सुबह "गुड मॉर्निंग" कहता था।अब वो चाय की प्याली थमा कर लौटती नहीं थी — बैठती थी, साथ में चुपचाप चाय पीती थी।और कभी-कभी, उस चुप्पी में भी एक सुकून था।हसन अब घर देर