सिसकती वफ़ा: एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल दास्तान - 6

    रचना: बाबुल हक़ अंसारी                         ".   भाग 6    धुन जो अब रुकती नहीं"पिछले अध्याय की कुछ पंक्तियाँ —"अब ये कहानी सच में मुकम्मल होने लगी है…",आदित्य के इन शब्दों ने जैसे तीनों की ज़िंदगी के बीते पन्नों पर नई स्याही फेर दी थी।अगले दिन सुबह का सूरज गंगा के पानी पर हल्के-हल्के थिरक रहा था।आयशा, अब डायरी बंद नहीं कर रही थी —बल्कि हर पन्ना खुद से बोलने लगा था।स्टूडियो में नया सत्र शुरू हुआ —इस बार अयान और आयशा साथ थे,और आदित्य ने उन्हें पहली बार एक