जो कहा नहीं गया – भाग 4(प्रतिध्वनि की पुकार)स्थान: हरिद्वार, गंगा तटसमय: वर्तमानगंगा किनारे स्थित पुराने शिव मंदिर की घंटियों की ध्वनि रिया के भीतर के मौन को झकझोर रही थी। वह धीरे-धीरे मंदिर की सीढ़ियाँ उतरी, हाथ में वही पुरानी भूरे रंग की डायरी थामे हुए — जिसकी जिल्द पर हल्के अक्षरों में उकेरा गया था:“राजा विष्णु की चुप्पियों में प्रेम की प्रतिध्वनि है।”यह पंक्ति उसे बेचैन कर रही थी। क्या यह किसी अधूरे प्रेम की दास्तान थी, या फिर किसी भूले हुए अध्याय का संकेत? उसकी आँखों में सवालों का समंदर था, और हृदय में एक अनजाना कंपन।वह