जो कहा नहीं गया – भाग 3चुप्पियों के बीच पुनर्मिलन"वो अब मौन में जी रहे थे…हर पूर्णिमा को वो एक थाली सजाते,और किसी आहट की प्रतीक्षा करते।शब्द नहीं बचे थे उनके पास…लेकिन प्रेम अब भी वहीं था —जो कहा नहीं गया बनकर।" वर्तमान युग – ऋषिकेशहिमालय की गोद में बसा, ऋषिकेश।एक शांत, आध्यात्मिक नगर, जहाँ गंगा की लहरों में शांति भी बहती है और रहस्य भी।यहाँ एक पुरानी किताबों की दुकान है — "शब्दाश्रम"।कहते हैं कुछ किताबें वहाँ केवल पढ़ने के लिए नहीं रखी गईं…वो किसी को बुलाने के लिए रखी गईं।हर बुधवार, उसी दुकान के पिछले कोने में एक लड़की