पार्ट 5 – हवेली के साएअवनि कमरे के बीचोंबीच खड़ी थी। हवा अचानक ठंडी हो गई थी, जैसे किसी ने खिड़की से बर्फीली सांसें अंदर भेज दी हों। टॉर्च की रोशनी काँप रही थी, और सामने रखे चाँदी के संदूक से हल्की-सी लाल रोशनी फूट रही थी।पीछे से आवाज़ आई –"तुम्हें ये सब नहीं देखना चाहिए था।"अवनि पलटी, उसकी माँ दरवाज़े पर खड़ी थीं। चेहरा पीला, आँखों में डर और हाथ काँपते हुए।“माँ… ये क्या है? ये चुनरी… ये कटे हुए हाथ का क्या मतलब है?”माँ ने कुछ नहीं कहा, बस धीमे-धीमे कमरे में आईं और संदूक का ढक्कन बंद