आर्यन ने जब अपने मोबाइल स्क्रीन पर “दादा नहीं रहे” ये तीन शब्द देखे, तो उसे जैसे किसी ने जड़ से काट दिया हो। पंद्रह साल पहले जब वो जखमपुर गाँव से अपने माँ-बाप के साथ शहर गया था, तब से उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा था। उस गाँव की धुंधली सी यादें कभी-कभी सपनों में आकर उसे डरा देती थीं, लेकिन वो उन्हें हमेशा ‘बचपन का वहम’ कहकर टाल देता था।अब जब उसके दादा की मृत्यु हो गई थी, उसे लौटना पड़ा। ट्रेन से तीन घंटे, फिर एक जीप, और फिर पैदल चलकर वो वापस उसी जगह पहुंचा जहाँ