1857 का इलाहाबाद

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यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है। इसमें वर्णित पात्र, घटनाएं और स्थान केवल लेखक की कल्पना का परिणाम हैं। इसका किसी भी वास्तविक व्यक्ति, समुदाय या इतिहास से कोई संबंध नहीं है।Title: "1857 का इलाहाबाद: बलिदान की गाथा"(एक फिल्मी अंदाज़ कहानी पर आधारित)---1. इलाहाबाद की वो सुबह 1857 से पहले का इलाहाबाद एक रंग-बिरंगा सांस्कृतिक नगर था। गंगा-यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी में बसे इस शहर में हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसालें देखने को मिलती थीं। गलियों में बच्चों की किलकारी, मंदिरों की आरती और मस्जिदों की अज़ान साथ-साथ गूंजती थी।इलाहाबाद का बाज़ार गुलजार रहता, हर नुक्कड़ पर चाय की दुकानें, मिठाइयों की