"मुझे तुमसे आज बात ख़त्म ही करनी है, अनुराधा!"अमित की आवाज़ कमरे में गूंज रही थी, मानो हर दीवार उस चीख को सोखने में असफल हो रही हो। गुस्से और झुंझलाहट से भरा अमित अनुराधा पर बरस पड़ा था। अनुराधा चुपचाप खड़ी रही, जैसे उसकी ज़ुबान ने साथ छोड़ दिया हो। आँखें भीगी थीं पर चेहरे पर कोई शिकन नहीं, कोई जवाब नहीं।अमित उसकी चुप्पी से और बिफर गया। इतने में उसके ऑफिस से फोन आया और वो बिना कुछ कहे, ज़ोर से दरवाज़ा पटककर निकल गया।अनुराधा धीरे-से उठी, दरवाज़ा बंद किया, और बर्तन समेटने लगी। हर एक आवाज़ —