रचना: बाबुल हक़ अंसारीअध्याय 5 "चिट्ठियाँ जो धड़कनों से लिखी गईं"रात ढल चुकी थी, लेकिन आयशा की आँखों में नींद नहीं थी।उसके सामने रखी थीं वो सारी चिट्ठियाँ, जो उसने आर्यन को कभी भेजीं और कभी भेज न सकी।आदित्य ने उन्हें एक-एक करके समेटा था,जैसे किसी बिखरे हुए प्रेम को फिर से पन्नों में दर्ज करने की ज़िम्मेदारी उसी की हो।आयशा ने वो चिट्ठियाँ फिर से पढ़नी शुरू कीं —हर शब्द, हर मोड़, हर विराम में आर्यन की साँसें थीं।---"प्रिय आर्यन,तुमसे दूर होकर भी मैं तुम्हारे आसपास साँस ले रही हूँ।तुम्हारे गिटार की हर तान आज भी मेरी नसों में