“जो ढूंढे वो रस्ता नहीं… चेहरा होता है।”बाबुल हक़ अंसारीआर्यन अगले दिन उसी कैफ़े में पहुँचा — जहाँ की तस्वीर में रिया बैठी थी।वो कोना अब भी वैसा ही था…बस मेज़ पर अब रिया की जगह खाली कुर्सी थी।उसने वहाँ के पुराने वेटर से पूछा —“क्या आप इस लड़की को पहचानते हैं?”वेटर ने तस्वीर देखी, कुछ पल ठहरा और बोला: “रिया… हाँ, अक्सर आती थी। पर अकेली नहीं।”“उसके साथ कोई लड़का भी आता था, शांत… पर बहुत ख्याल रखने वाला।वो कभी ज्यादा नहीं बोलता था, पर उसकी आंखें बहुत कहती थीं।”आर्यन की रगों में कुछ दौड़ गया —“अयान?”“नाम नहीं पता, साहब।