ब्रज नगरी का आह्वान

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सावन का महीना था। दिल्ली की भीड़-भाड़ से निकलकर आरव पहली बार कामां जाने का प्लान बना चुका था। सुना था कि यह जगह सिर्फ मंदिरों की वजह से नहीं, बल्कि अपने ब्रज के रस और आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए भी जानी जाती है।बस से उतरते ही उसने महसूस किया कि यहाँ की हवा अलग है—मीठी, शांत और किसी अनकहे भजन से भरी हुई। रास्ते में गोकुल चंदनी चौक, संकरी गलियाँ और हर मोड़ पर लगे "राधे-राधे" के जयकारे। हर कोई जैसे अजनबी नहीं बल्कि अपना था।आरव सबसे पहले चौरासी खंभों वाले मंदिर पहुँचा। कहा जाता है कि यहाँ रात