तन्हा सफ़र: जज़्बातों की छांव में भीगा इश्क़ - 3

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           रचना: बाबुल हक़ अंसारीभाग 3: ख़ामोश लम्हों की आवाज़ें वो खिड़की से हट गया...पर बाहर की बारिश अब उसके अंदर उतर चुकी थी।कमरे की दीवारें चुप थीं, पर उनमें रिया की हँसी गूंज रही थी।आर्यन ने अलमारी से वो पुरानी डायरी निकाली —जिसके हर पन्ने में रिया की साँसें बसी थीं।पन्ने पलटते हुए एक पेज के बीचकोई छोटा-सा लिफ़ाफ़ा फँसा हुआ मिला।कांपते हाथों से उसने उसे निकाला —लिफ़ाफ़े पर लिखा था: "जिसे तुम प्यार कहते हो,वो कभी-कभी हमारी रूह को किसी और से बाँध देता है..."अंदर एक और अधूरी चिट्ठी थी —स्याही कुछ धुंधली थी, पर हर