रचना: बाबुल हक़ अंसारीअध्याय 4: "पहली बार… पूरी धुन" पिछले अध्याय में:"मैं आर्यन का छोटा भाई हूँ… आदित्य। ये गिटार, आपकी चिट्ठियाँ — सब कुछ मेरे पास है। शायद अब वो अधूरी धुन फिर से सांस ले सके…"घाट पर शाम उतर चुकी थी।गंगा की लहरें धीरे-धीरे अंधेरे में खो रही थीं,लेकिन आयशा की आँखों में अतीत अब भी चमक रहा था।वो सीढ़ियों पर चुप बैठी थी, और आदित्य सामने गिटार थामे खड़ा था।चारों ओर एक अजीब सी निस्तब्धता थी —जैसे वक़्त रुककर इस पल को महसूस करना चाहता हो।“क्या मैं… वो धुन बजा सकता हूँ?”आदित्य ने पूछा।आयशा ने धीरे से