जो कहा नहीं गया – भाग 2(एक मौन… जो छाया बनकर चलता रहा)सन्नाटे में गूंजता नामसमय की रेत बहुत कुछ बहा ले गई थी।अब राजा विष्णु का तेज़ शांत पड़ चुका था, शरीर वृद्ध हो गया था, लेकिन मन की लौ अब भी धधक रही थी किसी एक स्मृति में, जो शब्दों से नहीं… मौन से जुड़ी थी।हर पूर्णिमा को, वे एक थाली सजाते — उसमें चंपा के फूल, एक दीपक, और एक पुरानी चिट्ठी रखते।चिट्ठी अब पीली पड़ चुकी थी, किनारे घिस चुके थे…लेकिन हर बार जब वे उसे पढ़ते, ऐसा लगता मानो पहली बार पढ़ रहे हों।वो चिट्ठी राध्या