"रात के तीसरे पहर, जब पूरा गाँव नींद में डूबा रहता था और सिर्फ सियारों की हूक और उल्लुओं की बोली सुनाई देती थी, तब गांव के पास खंडहर में तब्दील एक पुरानी हवेली 'राजपुर हवेली' से एक औरत की चीख सुनाई दी। कहते हैं, जिसने भी वो चीख सुनी, उसका अगला सूरज नहीं निकला..."सन 1893 की बात है। उत्तर भारत के एक छोटे से गाँव 'धनौरा' में एक आलीशान हवेली थी—राजपुर हवेली। इस हवेली का मालिक था ठाकुर अमर प्रताप सिंह, जो अपनी रौब और क्रूरता के लिए कुख्यात था। ठाकुर की हवेली एक पहाड़ी की चोटी पर बनी