सिसकती वफ़ा: एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल दास्तान - 3

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रचना: बाबुल हक़ अंसारीभाग-3    जिस गिटार से मोहब्बत सांस लेती थीगिटार की वह अधूरी धुन जब घाट पर गूंजी, तो जैसे हर लहर ने उसे थाम लिया हो।आदित्य की उंगलियाँ काँप रही थीं, और आयशा की आँखें भी।धुन पूरी होते-होते रुकी नहीं — बल्कि जैसे वक़्त को भी रोक लिया।आयशा चुपचाप देखती रही, मानो उसके भीतर कुछ टूटकर फिर से जुड़ गया हो।वो बोली नहीं —बस धीरे से घाट की सीढ़ियों पर बैठकर गंगा की तरफ़ देखने लगी।आदित्य उसके पास आकर बैठा।"आयशा जी… ये धुन… अब मेरी नहीं रही।इसमें आपका ग़म, आर्यन की मोहब्बत… और हमारी तलाश है।कहिए… इसे