हुक्म और हसरत - 4

  • 159
  • 1
  • 57

हुक्म और हसरत  #Arsia  अध्याय 4:~“साज़िश और साया”   जो लफ़्ज़ों में न कहे, वो नज़रों से कह रहा था, एक ताज था सर पर… मगर दिल किसी की बंदगी कर रहा था।”   ******    महल की घड़ी ने सात बजाए। सिया ने तकिये के नीचे से फोन निकाला, स्क्रीन पर उँगली घुमाई और फिर गहरी सांस ली।    “फिर से एक महलनुमा सोमवार...”    बाहर से कव्या की आवाज़ आई, “राजकुमारी जी, आपकी ड्रेस प्रेस हो चुकी है — हल्दी रंग की साड़ी या ब्लू कुर्ता?”      “जो भी कम तंग हो,” सिया ने कहा, “आज