तुमसे ....तुम तक

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अध्याय 1 खामोशी रात की ख़ामोशी में बस एक नाम गूंजता था…"तुम"तू कहीं नहीं थी… पर हर जगह थी।मेरे कमरे की दीवारों पर, मेरी डायरी के हर पन्ने पर, मेरी चुप्पियों में, मेरी धड़कनों में, मेरी मुस्कानों के पीछे…हर जगह बस तू थी।कितनी अजीब बात है ना?जिसे पाने की लाख कोशिश की, वो कभी पास नहीं आई।जिसे भूलना चाहा, वो हर साँस में बसती मैंने तुझसे मोहब्बत नहीं की थी…मैंने तुझे खुदा माना था।लेकिन तू…तूने मुझे क्या समझा, ये आज भी सवाल है।कहते हैं ना, अधूरी मोहब्बतें मुकम्मल कहानियाँ बनती हैं।पर यकीन मान, अधूरी मो