रात की यात्रा और एक अनकहा साया - 1

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राहुल ने अपनी कलाई पर बंधी स्मार्टवॉच देखी। रात के ग्यारह बज चुके थे। सूरत के क्लाइंट मीटिंग से अभी-अभी वह फ़्री हुआ था। पूरा दिन दिमाग खपाने वाला रहा था, और अब उसे बस मुंबई अपने आरामदायक फ्लैट में पहुँचना था। एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में, उसकी दुनिया कोड, लॉजिक और डेटा के इर्द-गिर्द घूमती थी, जहाँ हर समस्या का एक तार्किक समाधान होता था। लेकिन आज की रात, उसे नहीं पता था कि उसकी तार्किकता की सीमाएँ कहाँ खत्म होने वाली थीं।उसने अपनी चमचमाती सेडान का दरवाज़ा खोला और ड्राइवर सीट पर खुद को ढीला छोड़ दिया।