अध्याय 2 - ई खून का निशान"…और जब अन्नया ने सीढ़ियों से नीचे कदम रखा, उसकी नज़र दरवाज़े पर जमे उस लाल धब्बे पर पड़ी। वह धब्बा ताज़े खून का था… और तभी पीछे से सरोज की दबे पांव आती परछाई दीवार पर उभरी।"रात के सन्नाटे में सिर्फ़ घड़ी की टिक-टिक सुनाई दे रही थी। बाहर आकाश में बादल गरज रहे थे और हल्की-हल्की बारिश की बूँदें खिड़की से टकरा रही थीं। अन्नया की धड़कनें इतनी तेज़ थीं कि उसे अपना सीना फटता हुआ महसूस हो रहा था।"ये… खून यहाँ कैसे आया?" अन्नया की आवाज़ काँप रही थी, आँखें चौड़ी