तन्हा सफ़र: जज़्बातों की छांव में भीगा इश्क़ - 2

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भाग-2: अधूरी चिट्ठी और अनसुना नाम.          रचना: बाबुल हक़ अंसारीउसने एक लंबा साँस लिया…  फिर बुदबुदाया —  **"कभी-कभी तन्हाई में सबसे ज़्यादा आवाज़ें होती हैं… बस सुनने वाला कोई नहीं होता।"**  ••● अब आगे की कहानी ●••उसे अब आँसू बहाना छोड़ना पड़ गया था —  क्योंकि अब वो समझ चुका था,  कि **इंतज़ार भी एक तरह की आदत होती है…**  जिसे छोड़ा नहीं जाता।पर उस सुबह, आदत से हटकर कुछ हुआ।जब उसने डायरी को धीरे से बंद किया और उसे वापस उसी संदूक में रखने लगा,  तो एक कोने से कुछ फंसा हुआ सा काग़ज़ निकला।  पीला… हल्का सा फटा हुआ…  शायद किसी चिट्ठी का