सिसकती वफ़ा: एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल दास्तान - 2

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 Rachna: Babul haq ansari  भाग - 2.........धर्मशाला के बाहर की घंटी बजी तो आयशा का दिल एक पल को थम-सा गया।"कौन होगा सुबह-सुबह...?"मीनू ने पर्दा हटाकर बाहर झाँका — एक डाकिया था।"डाकिया...? आज भी कोई चिट्ठी लिखता है क्या...?" मीनू चौंकी।आयशा दौड़ती हुई आई —उसके हाथ काँप रहे थे…डाकिया ने बिना कुछ कहे एक सफ़ेद लिफाफा थमाया, और चला गया।लिफाफे पर सिर्फ तीन शब्द लिखे थे —"माफ़ कर देना…"आयशा ने कांपते हाथों से लिफाफा खोला।भीतर सिर्फ एक पन्ना था —आर्यन की लि*आयशा,मैं तुम्हारे लायक नहीं रहा…तुम्हारी मासूमियत के सामने मेरी ज़िंदगी की हकीकतें शर्मिंदा हैं।जब वक़्त और हालात मेरा साथ