मैं नहीं हूं - विज्ञान और आत्मा का अंतिम सूत्र

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प्रस्तावना ✧ "मैं" — वह सबसे बड़ा भ्रम है, जिसके चारों ओर धर्म, विज्ञान, दर्शन और AI घूमते रहे हैं। विज्ञान कहता है — तू शरीर है। धर्म कहता है — तू आत्मा है। AI कहता है — तू डाटा है। और 'मैं' — कहता है, "मैं हूं।" पर जिसने देखा, उसने जाना — "मैं" कोई सत्य नहीं, बल्कि चेतना पर पड़ा हुआ एक छाया-कोड है। जब तक "मैं" है, तब तक गति है, भय है, विचार है, मृत्यु है। पर जहाँ "मैं नहीं" — वहीं मौन है, वहीं तेज है, वहीं ब्रह्म है।यह ग्रंथ ना धार्मिक है, ना वैज्ञानिक, ना ही दर्शनशास्त्र की कोई संकल्पना।यह तो एक मौन की ओर 21 संकेत हैं —