Rachna: Babul Haq ansari सिसकती वफ़ा: एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल दास्तान भाग - 1कभी-कभी ज़िंदगी वो सवाल पूछ लेती है... जिनका जवाब सिर्फ ख़ामोशी के पास होता है। और मोहब्बत... वो अक्सर वहीं से शुरू होती है, जहाँ लोग टूट कर बिखर जाते हैं।सहर की हल्की सी रौशनी जैसे ही शहर के चेहरे पर बिखरनी शुरू हुई, स्टेशन की घड़ी ने सुबह के पाँच बजाए। प्लेटफार्म पर सिर्फ पंखे की आवाज़ और कुछ इक्का-दुक्का कुलियों की फुसफुसाहट थी।इसी सन्नाटे में, एक नीली सलवार में सिमटी सी लड़की बेंच पर बैठी थी — आँखें लाल थीं, पर आंसू थमे हुए...