हुक्म और हसरत - 2

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हुक्म और हसरत   “ये महल मेरी कैद बनता जा रहा है…” सिया ने आइने में खुद को देखते हुए बुदबुदाया।   लाल रंग की फ्लोरल लहंगे में, बालों को खोले वो जैसे किसी राजकुमारी की ही तरह लग रही थी।   टकराव की दस्तक बाहर खड़ी थी। और उसका नाम था — अर्जुन।   राजकुमारी जी, अर्जुन सर आपका इंतज़ार कर रहे हैं,” काव्या ने धीमे स्वर में कहा।काव्या उसकी असिस्टेंट थी।   “इतनी सुबह? सिया ने कहा।   आपकी सुरक्षा की मीटिंग है, मैम।   सिया बाहर निकली तो मुख्य हॉल में अर्जुन पहले से खड़ा था।