इश्क और अश्क - 64

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"महल नहीं, तो कहां ले जाऊं तुम्हे?"(प्रणाली को कुछ समझ नहीं आ रहा था)वो बहुत घबरा गई और सोचने लगी, "कैसे बचाऊं तुम्हे..."माथे पर हाथ रखकर सोचने लगी...ऊपर से वर्धांन के शरीर से पानी की तरह निकलता खून, उसकी धड़कनें और बढ़ा रहा था।कुछ देर सोचने के बाद, उसने वर्धांन को खड़ा करने की कोशिश की और उसे अपने सीने से लगाकर उड़ने लगी...उसे अभी ठीक से उड़ना नहीं आ रहा इसलिए लड़खड़ा रही है.....फिर भी हिम्मत बांधे हुए उड़े जा रही।।।।"वर्धांन, अपनी आंखें खोलो... मैं तुम्हे कुछ नहीं होने दूंगी... हिम्मत मत हारना!"(उसकी घबराई हुई आवाज भर्राई हुई थी)वो