वो आवाज़ फिर आई। धीमी, गहरी, और डरावनी। खर्र... खर्र... खर्र... जैसे कोई नाखूनों से पुरानी लकड़ी को कुरेद रहा हो। हर रात। ठीक 2 बजकर 19 मिनट पर। रोहन अभी-अभी दिल्ली से नैनीताल आया था — बेरोज़गारी की चोट, टूटा हुआ रिश्ता, और मन का भारीपन उसके चेहरे पर साफ़ झलकता था। उसे कुछ दिन एकांत चाहिए था — सोचने के लिए, खुद को दोबारा जोड़ने के लिए। "वैली पाइंस मोटेल" — एक पुराना, सीलन से भरा, वीरान-सा दिखने वाला मोटेल — यही उसे सबसे सस्ता और शांत लगा। कमरा नंबर 18। कमरे की दीवारें पीली पड़ चुकी थीं,