“महाराज, राजकुमारीजी आ गई हैं।” एक दास बोला। यह बात सुनकर दौड़ते कदमों से मदनपाल और उसकी माता वहाँ पहुँच गए जहाँ राजकुमारी थी। हाँफते और टूटे स्वर में, आँखों में आँसू भरते हुए “मेरी बेटी!” कहकर उसकी माता उसे गले लग गई। थोड़ी देर आसपास देखने के बाद मदनपाल बोला, “सूर्यांश और बाकी सब कहाँ हैं?” सूर्यांश का नाम सुनते ही संध्या की आँखों में आँसुओं की एक लंबी धारा बह निकली। पारो ने आगे आकर जीद को मदनपाल को सौंपा। “वाणी?” मदनपाल के इस सवाल का भी कोई उत्तर नहीं था। थोड़ी देर रुककर पारो ने सारी बात मदनपाल को