चंद्रवंशी - अध्याय 8

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चंद्रमंदिर के दरवाज़े के बाहर किसी के चलकर आने की आहट विनय के कानों में हवा की तरह टकराई। अच्छे-बुरे विचारों में उलझा विनय, रोम को यहाँ-वहाँ नज़र फेरकर ढूँढने लगा। पढ़ने में मग्न विनय यह भी भूल गया कि पंडित होश में आ चुका है। उसने पंडित की ओर देखा और हल्की तीखी नज़र मंदिर के कोट की तरफ फेर दी। कई साल पहले इस मंदिर में क्या हुआ होगा, इसकी परछाइयाँ उसकी नज़रें पढ़ने की कोशिश कर रही थीं। साथ ही उसके कान एक साथ उठती और गिरती आहटों की रफ्तार को परख रहे थे। थोड़ा पास आते