सुबह मदनपाल मंदिर के बाहर आया। उसी समय सूर्यांश घोड़े पर सवार उसकी नजरों के सामने सूर्य जैसी रोशनी फैलाती मशाल हाथ में लेकर आगे बढ़ा। मदनपाल सूर्यांश को देखकर खुश हुआ और दोनों अपनी सवारी से उतरकर गले मिले। “सूर्यांश, कहां चला गया था?” मदनपाल बोला। “राज्य संकट में है राजकुमार।” हाथ में एक नक्शा लेकर मदनपाल के हाथ में रख दिया। नक्शा देखकर आश्चर्यचकित मदनपाल बोला, “हमारे सामने ये सारे राज्य हैं?” “हाँ!” सूर्यांश बोला। थोड़ी देर मंदिर को निहारने के बाद फिर बोला, “मुझे महाराज से मिलना है।” “महाराज! क्यों, महाराज से क्यों मिलना है?” मदनपाल बोला। “उसकी चर्चा हम रास्ते में करेंगे।”