Part 16: ज्ञान का द्वार — सत्य की खोजअर्णव अब मायावी नगरी छोड़ चुका था। लेकिन उसका मन शांत नहीं था। एक अजीब उथल-पुथल उसकी आत्मा में चल रही थी —"मैं त्रैत्य का पुत्र हूं... पर क्या मेरा रास्ता वही होगा?"सामने लम्बा रेतीला रास्ता था। दूर-दूर तक न कोई इंसान, न पेड़, न आवाज़। बस तपती धूप और ज़मीन से उठती गरमी।उसने पीछे मुड़कर देखा — मायावी नगरी अब धुएं में बदल चुकी थी।“अब लौटना मुमकिन नहीं… मुझे आगे बढ़ना ही होगा।”️ गुप्त संकेत — वह रहस्यमयी चिन्हचलते-चलते अर्णव के सामने एक चट्टान आई। उस पर कुछ लिखा था… एक प्राचीन लिपि में:"जहाँ