तुगलकाबाद का दिन, इश्क़ की शाम("कुछ रिश्ते किसी तारीख पर नहीं बनते... वो बस एक किले की सीढ़ियों पर खड़े होकर बन जाते हैं।")एक दिन रविवार की सुबह कुछ नई उमंगों के साथ हुई। रविवार होने की वजह से लाइब्रेरी बंद थी। दानिश ने सुबह-सुबह आरजू को मैसेज कियाः"पढ़ाई छोड़ो आज... कहीं बाहर चलते हैं।"थोड़ी देर बाद जवाब आयाः"ठीक है, लेकिन गाइड तुम रहोगे। मैं सिर्फ़ मुसाफिर।""तो फिर चलो... इतिहास पढ़ने नहीं, महसूस करने चलते हैं तुगलकाबाद किला।"तुगलकाबाद की दीवारों के बीचदोपहर की हल्की धूप थी। दोनों मेट्रो से किला महरौली पहुँचे। पुराने पत्थरों, टूटी दीवारों और वीरान गलियों के