श्री बप्पा रावल श्रृंखला खण्ड-दो - एकादशम अध्याय

  • 684
  • 252

एकादशम अध्याय हिन्द सेना का नायक कौन? काश्मीर अपने कक्ष में भवभूति के साथ बैठे ललितादित्य चिंतित मुद्रा में थे। शीघ्र ही पगड़ी पहने, घनी मूंछ और दाढ़ी वाले एक अंधेड़ आयु के व्यक्ति ने उनके कक्ष में प्रवेश किया। उसे देखते ही ललितादित्य के मुख पर कई प्रश्न उभरकर आये, “कहिये महामंत्री ‘मित्रसर्मन’ ? आपने राजसभा के स्थान पर हमें और भवभूति को यूं एकांत में मिलने के लिए क्यों कहा ?” “सूचना ही कुछ ऐसी है, महाराज। केवल विश्वासपात्रों को ही दी जा सकती हैं।” मित्रसर्मन ने एक श्वास में कहा। “पहले ये बताईये कि देवदत्त कहाँ हैं ?” “क्षमा करें, महाराज। हमें सूचना