श्री बप्पा रावल श्रृंखला खण्ड-दो - सप्तम अध्याय

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सप्तम अध्याय आलोर का अग्निसंग्राम ब्रह्ममहूर्त बीतने को था। सूर्य की हल्की लालिमा आकाश में दिखने लगी थी। तलवार की नोक जमीन पर रगड़ते हुए देवा अपनी सेना की टुकड़ी के आगे पदचाप कर रहा था। आलोर के किले से दो कोस दूर खड़े वो बड़ी व्यग्रता से शत्रु सेना की प्रतीक्षा में था। शीघ्र ही कोसों दूर से हुंकारें सुनाई देनी आरम्भ हुयीं। सहस्त्रों अश्वों के पदचाप ने इतनी धूल उड़ाई कि सामने का दृश्य दिखना ही बंद सा हो गया। बीस सहस्त्र की अश्वारोही और दस सहस्त्र की पैदल सेना का नेतृत्व करता देवा पुनः अपने अश्व पर आरूढ़ हुआ और