अंधेरे की अंजली - भाग 5

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भारत आज़ाद हो चुका था। सड़कों पर अब पुलिस की वर्दी बदल चुकी थी, अंग्रेज़ी बोलने वाले अफसर अब भारतीय बन गए थे, और सरकारी भवनों पर यूनियन जैक की जगह तिरंगा लहरा रहा था। लेकिन आज़ादी के उस पर्व के बाद भी कई आवाज़ें थीं जो अंधेरे में गुम थीं – उन आवाज़ों में एक थी अंजलि शास्त्री की।अंजलि को सम्मान मिला, पहचान मिली, लेकिन उसने आराम नहीं चुना। उसे याद थी अपनी माँ की बात – "तू अकेली नहीं, तेरे जैसी हजारों बेटियाँ हैं जिन्हें देखना नहीं आता, लेकिन जीना आता है।"एक आश्रम की नींव:1948 की जनवरी में,