अंधेरे की अंजली - भाग 4

  • 369
  • 123

साल 1947।भारत आज़ादी की दहलीज़ पर खड़ा था, और हर दिशा में जैसे कोई अनसुनी धुन गूंज रही थी। लोग बेकरार थे, धरती अधीर थी, और समय जैसे थम सा गया था। लेकिन जिन आंखों ने कभी सूरज को देखा नहीं, उन आँखों में भी उम्मीदों की लपटें थीं।अंजलि अब 17 साल की हो चुकी थी। अंग्रेज़ों की गिरफ्त से छूटे तीन साल हो चुके थे, लेकिन उसके जीवन की रफ्तार कभी ठहरी नहीं। वो दिन-रात आज़ादी के विचार को जन-जन तक पहुँचाने के काम में लगी थी – अपने गीतों से, अपनी बातों से, अपने संकल्प से। एक नया