प्रस्तावनाकुछ प्रेम कहानियाँ अधूरी रह जाती हैं... और कुछ अधूरी होकर भी अमर हो जाती हैं।यह कहानी भी उन्हीं में से एक है।‘प्रकाश और राधिका’— दो नाम नहीं, दो आत्माएँ थीं जो एक-दूसरे की सांसों में समाई हुई थीं।उनका प्रेम कोई समझौता नहीं था, कोई समझदारी नहीं थी,वो तो बस आत्मा की आवाज़ थी—जो ना रिश्तों की परिभाषा मांगती थी, ना समाज की अनुमति।इस कहानी में ना ही हीरो कोई योद्धा है, और ना ही हीरोइन कोई परी।ये कहानी बहुत साधारण लोगों की है—लेकिन उनकी भावनाएँ इतनी असाधारण थीं, कि उन्होंने प्रेम को पुनर्परिभाषित कर दिया।यह उपन्यास सिर्फ एक प्रेम