उस दिन बारिश हुई थी

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"कैसी हो"अचानक मोबाइल की स्क्रीन पर शेखर का मैसेज आया।करीब दो साल बाद...ना दिल धड़कता था अब उतना, ना उम्मीद बची थी। पर कुछ बातें कभी नहीं मरती।छवि एकटक अपने मोबाइल को देखे जा रही थी। उसकी आँखें बस पथराई हुई थीं, लेकिन उसके हाथ कांप रहे थे। दिल में एक तूफान सा उठ रहा था। हजारों सवाल मन में थे।आँखों में आँसू नहीं थे, लेकिन दो साल पहले की उस बारिश ने आज फिर से मन और बदन को भिगो दिया था।छवि ने मोबाइल को तकिये के नीचे रख दिया और खुद भी बिस्तर पर लेट गई — बेजान