---अंतिम अध्याय: अँधेरा… सच्चाई… और परछाई का खेलबारिश की झमाझम बूँदें कोठी की पुरानी छत पर गिर रही थीं। बिजली कड़क रही थी, और हर बार उसके साथ एक दहकती परछाई सरक कर गायब हो रही थी। इंस्पेक्टर सुखी ने जैसे ही दरवाज़ा खोला, धूल भरी हवा में एक मुस्कुराती तस्वीर ने उसका ध्यान खींचा — प्रीत की। लेकिन मुस्कान में एक सुरागा जैसे भविष्य की खबर झांक रही थी।सुखी की आँखें तस्वीर के चारों ओर खोजने लगीं: कहीं कोई पंजा, कहीं कोई रक्तस्राव का निशान। तभी ऊपर से फर्श का पट्टा अचानक धड़ाम से गिरा। सुखी ने पीछे झाँका